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त्र्य॑र्य॒मा मनु॑षो दे॒वता॑ता॒ त्री रो॑च॒ना दि॒व्या धा॑रयन्त। अर्च॑न्ति त्वा म॒रुतः॑ पू॒तद॑क्षा॒स्त्वमे॑षा॒मृषि॑रिन्द्रासि॒ धीरः॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

try aryamā manuṣo devatātā trī rocanā divyā dhārayanta | arcanti tvā marutaḥ pūtadakṣās tvam eṣām ṛṣir indrāsi dhīraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्री। अ॒र्य॒मा। मनु॑षः। दे॒वऽता॑ता। त्री। रो॒च॒ना। दि॒व्या। धा॒र॒य॒न्त॒। अर्च॑न्ति। त्वा॒। म॒रुतः॑। पू॒तऽद॑क्षाः। त्वम्। ए॒षा॒म्। ऋषिः॑। इ॒न्द्र॒। अ॒सि॒। धीरः॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:29» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पन्द्रह ऋचावाले उनतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रपदवाच्य राजगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त करनेवाले राजन् ! जो (मनुषः) मनुष्य (देवताता) विद्वानों से करने योग्य व्यवहार में (दिव्या) श्रेष्ठ (त्री) तीन (रोचना) प्रकाशकों को (धारयन्त) धारण करते हैं (अर्यमा) व्यवस्थापक अर्थात् किसी कार्य्य को रीति से संयुक्त करनेवाला (त्री) तीन सुखों को धारण करता है और जो (पूतदक्षाः) पवित्र बल से संयुक्त करनेवाला (त्री) तीन सुखों को धारण करता है और जो (पूतदक्षाः) पवित्र बलवाले (मरुतः) मनुष्य (त्वा) आपका (अर्चन्ति) सत्कार करते हैं (एषाम्) इनके (त्वम्) आप (ऋषिः) मन्त्र और अर्थों के जाननेवाले (धीरः) धीर (असि) हो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो तीन कर्म्म, उपासना और ज्ञान को धारण करके पवित्र होते हैं, वे ही बलवान् होकर सत्कृत होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रपदवाच्यराजगुणानाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र राजन् ! ये मनुषो देवताता दिव्या त्री रोचना धारयन्ताऽर्यमा त्री सुखानि धरति ये पूतदक्षा मरुतस्त्वार्चन्त्येषां त्वमृषिर्धीरोऽसि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्री) त्रीणि (अर्यमा) व्यवस्थापकः (मनुषः) मनुष्याः (देवताता) विद्वत्कर्त्तव्ये व्यवहारे (त्री) त्रीणि (रोचना) प्रकाशकानि (दिव्या) दिव्यानि (धारयन्त) (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (त्वा) त्वाम् (मरुतः) मनुष्याः (पूतदक्षाः) पवित्रबलाः (त्वम्) (एषाम्) (ऋषिः) मन्त्रार्थवेत्ता (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययोजक (असि) (धीरः) ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये त्रीणि कर्मोपासनाज्ञानानि धृत्वा पवित्रा जायन्ते त एव बलवतो भूत्वा सत्कृता भवन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जे ज्ञान, कर्म, उपासना करून पवित्र बनतात ते बलवान होतात व सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १ ॥